” आपका जीवन तब तक सार्थक नहीं है जब तक आप किसी ऐसे व्यक्ति के लिए कुछ नहीं करते जो आपके लिए कुछ नहीं कर सकता।” सेवा के लिए ब्लेंक चेक्स दे देने वाले, असंख्य बच्चों को पढ़ने में आर्थिक एवं मूलभूत सहायता प्रदान करने वाले , मातृभूमि और धर्म के लिए निरन्तर सेवा में रहने वाले अनेक महापुरुष हुए, हैं। लेकिन ये सब करके ज़रा भी न जताने वाले, नेकी कर दरिया में डाल के नितांत अनुयायी समाज मे कम ही मिलते हैं। आज आपको एक ऐसे ही महान , दूरदर्शी और बिरले व्यक्तित्व से मिलवाते हैं।
अरावली की पहाड़ियों के बीच एक छोटा लेकिन सुंदर गांव है गढ़ सिवाना। हिंगलाज माता के इस गांव की धरती ने ग्रेनाइट, बाजरा और जीरा के अलावा इतिहास के कई रत्न भी पैदा किये। सिवाना की ही इस पुण्य धरती पर 22 फरवरी 1936 के दिन लक्ष्मीचन्द जी कानूंगा के घर घेवर चंद जी कानूंगा का जन्म हुआ। परिवार के लिए ऊंची आकांक्षाएं और सुंदर जीवन की चाह हर व्यक्ति रखता है। इसी सपने को पूरा करने घेवरचन्द जी कानूंगा के पिता सिवाना की तंग गलियों से चेन्नई के बड़े शहर को निकल पड़े। वहां उन्होंने अपने परिवार के लिए सम्पन्न और प्रभावशाली जगह बनाई। चेन्नई की AG जैन हाई स्कूल में घेवरचंद जी का दाखिला करवाया गया। मेट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात घेवरचन्द जी ने अपनी योग्यता और विद्वता से प्रतिष्ठित मद्रास क्रिस्चियन कॉलेज में दाखिला लिया। 8 साल की आयु से ही उन्हें किताबें पढ़ने में रुचि हो गयी थी। उनके बचपन की सर्वोत्तम स्मृतियों में से एक हर सप्ताह अड्यार पब्लिक लाइब्रेरी जाने की है। कॉलेज में आते आते वे एक हफ्ते में एक किताब तो कम से कम पढ़ ही लिया करते थे। यानि किताबों के माध्यम से वे सिर्फ साक्षर नहीं, शिक्षित भी हो रहे थे और जीवन की परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के लिए तैयार हो रहे थे।
घेवरचन्द जी के जीवन के इतने बसंत बीत गये, जीवन ने उन्हें कुछ खट्टे कुछ मीठे पल दिए, उनकी यात्रा भी कठिन रास्तों से भरी रही, लेकिन अपने मन में निराशा का एक भी क्षण उन्होंने नहीं आने दिया, सकारात्मक सोच की ऐसी मिसाल कम ही दिखती है की राह में आये हर पत्थर को सिर्फ मील का पत्थर न बनाकर वे सुंदर नक्काशीदार स्मारक बना देते थे और अनूठी बात ये की सब कुछ अपने बल बूते पर । ” निज समाधि में निरत, सदा निज कर्मठता में चूर”! बचपन से ही उन्होंने अपने रास्ते खुद चुने, सर्वश्रेष्ठ राह पर चले , स्वयं की प्रेरणा लेकर प्रतिदिन स्वयं से ही बेहतर होने का प्रण ले जीवन में कुछ कर गुज़रने का जूनून घेवरचन्द जी को प्रगति के ऊँचे रास्तों पर ले गया । बचपन से ही पढ़ाई के साथ घेवरचन्द जी का झुकाव लोक कल्याण की तरफ रहा। जहां सब बच्चे मिले हुए जेब खर्च को खाने पीने इत्यादि में खत्म करते थे, घेवरचन्द जी, जेब खर्च का कुछ हिस्सा छोटी बड़ी मदद ,वं बाकी हिस्सा किताबों में व्यय करते थे।
श्री घेवरचंद कानूंगा ने कभी नौकरी करने के बारे में नहीं सोचा। उनका जन्म एक उद्यमी परिवार में हुआ था और उन्होंने खुद को नौकरी देने वाले के अलावा और कुछ नहीं देखा। वास्तव में, उनका कहना है कि अधिक रोजगार देने वालों की भारत जैसे देश को जरूरत है। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने एक उद्यमी बनने का फैसला क्यों किया, तो श्री घेवरचन्द जी कहते हैं कि उन्हें ऐसा लगता है कि वे यही करने के लिए पैदा हुए हैं। वे एक स्वतंत्र विचारक है जो हमेशा दूसरों का जीवन बेहतर करने में सहयोगी रहे है, उनका मानना है कि वे एक उद्यमी होने से अपने भाग्य के निर्माता स्वयं ही बनते है। कंपनी की बढ़ाई प्रतिष्ठा, उद्यमी बन लोगों को दिया रोजगार कुछ सीखने की लगन हो तो इंसान विषम परिस्थियों में भी कितने गूढ़ सूत्र सीख लेता है । घेवरचन्द जी कोलकाता में आरटिफीसियल एनोडाइज्ड ज्वैलरी का उत्पादन करते थे। उस वक़्त घेवरचन्द जी ज्वेलरी पर प्लेटिंग की तकनीक पर शोध कर रहे थे । तब वे जर्मन एम्बेसी की लाइब्रेरी में जाकर कलर चढाने के तरीके सीखने के लिए किताबे पढ़ते थे । जो किताबे एम्बेसी में उपलब्ध नहीं थी , उनकी लगन और दिन रात की मेहनत देखकर एम्बेसी वाले स्वयं मंगवाकर उन्हें देते थे। इस तरह पढ़ कर शोध करके घेवरचन्द जी ने प्लेटिंग का यूनिक फार्मूला निकाला । उनकी बनायीं अंगूठियों में एक “तिरंगे” की अंगूठी बड़ी मशहूर हुई । भारी मांग होने की वजह से जितनी अँगूठिया बन कर आती थी सारी बिक जाती थी , इस प्रकार रोज़ कलकत्ता के आस पास के असंख्य लोगों को रोज़गार मिलता था । उनकी रोज़ी रोटी के प्रणेता घेवर चंद जी इनके लिए ईश्वर से हो गए ।
५, ७ वर्ष कलकत्ता में काम करने के बाद उन्हें अपनी मिट्टी की याद आने लगी । अपने लोगों के बीच अपनों के लिए कुछ करने की इच्छा से वे राजस्थान लौट आये । तब जोधपुर में भ्रमण के वक़्त राजस्थान के तत्कालीन उद्योग मंत्री से उनका मिलना हुआ । मंत्री जी ने उन्हें कहा की ” घेवर चंद राजस्थान में एक बड़ी इंडस्ट्री की बहुत आवश्यकता है । ज़मीन मै उपलब्ध कराऊंगा , तुम अपने योग्यता से शुरू करो बस ।” और इस तरह – 1964 में ALCOBEX (Aluminium Copper Brass Extrusion) मेटल्स की शुरुआत हुई ।
देश-विदेष में अपना नाम स्थापित करने वाली, अनेकों रोजगार देने वाली यह इण्डस्ट्री आधे दषक तक स्वदेषी उत्पाद बना राजस्थान व देष का गौरव बनी।
सेवा के लिए खुले हाथ, फ़िज़ूल खर्च के लिए बिल्कुल बंद रहते थे।
उनके पिता ने उन्हें मितव्ययता का पाठ पढ़ाया था। ज़रूरत के लिए सब उपलब्ध लेकिन फ़िज़ूल खर्च में ज़रा भी यकीन नहीं करते थे। राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री जैसे लोगों के साथ उठने बैठने वाले घेवरचंद जी कभी 5 सितारा होटल में नहीं रुके। साधारण होटलों में ही निवास करते थे।
वहीं दूसरी ओर यदि उनके दर पर कोई ज़रूरतमंद आ जाता था तो कभी भी खाली हाथ नहीं जाता था। चाहे एल्कोबेक्स के दरवाज़े ही क्यों न हो] अगर कोई नौकरी मांगने आया है तो क्षमता से अधिक कार्मिकों के साथ काम किया लेकिन हर एक को रोजगार दिया। उस वक़्त एक जुमला भी बहुत प्रचलित था, की यदि किसी के शादी के लिए बायो डेटा में एल्कोबेक्स की नौकरी लिखी है तो , अतिरिक्त एवं महत्वपूर्ण उपलब्धि मानकर शादी में आसानी होती थी।
अनेक महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी निभाई
अपने स्वयं के विनिर्माण व्यवसाय के अलावा औद्योगिक विकास में अपनी बहुमूल्य भूमिका के सम्मान में, श्री घेवरचंद कानूंगा को औद्योगिक विकास के लिए बहुत प्रतिष्ठित राज्य सलाहकार समिति के स्थायी सदस्य होने का दुर्लभ सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इसके अलावा, श्री घेवर चंद कानूंगा कई वाणिज्यिक और सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं।
राजस्थान में तब अकाल की मार ज़ोरो से थी। मानव त्रस्त था और पशु प्राण त्याग रहे थे । पानी और चारा उपलब्ध नहीं हो रहा था ,परिस्थिति सरकार के हाथ से भी निकल रही थी । तब राजस्थान के माननीय मुख्यमंत्री श्री हरिदेव जी जोषी ने घेवर चंद जी को योग्य समझ कर गौ रक्षा का भार सौंपा। “इस विकट अकाल में आपको गौधन की रक्षा करनी हैं। गौ माता के खाने पानी की व्यवस्था करवाइये उन्हें मरने से बचाइए । कल मै बाड़मेर जा रहा हूँ, आप भी आइये मिलकर समाधान खोजते हैं” यहां उनकी निष्ठा इस वृतांत से जान सकते हैं कि जिस मुकाम पर आज घेवरचन्द जी हैं, वहां पहुंचना कितनी मेहनत भरा सफर है । अगले ही दिन मुख्यमंत्री जी से मिलने के बाद वे घर भी नहीं गए, चारे पानी का इंतज़ाम करने सीधे पंजाब निकल गए । घर पर सन्देश भिजवा दिया गया था की गायों की जीवन रक्षा के लिए पंजाब निकल गया हूँ । उन्होनें मारवाड़ अकाल राहत सहायता समिति का गठन व अध्यक्षता की। इस समिति के गठन में वर्तमान मुख्यमंत्री श्री अषोक गहलोत जी ने हर प्रकार का सहयोग दिया और लाखों गायों को मरने से बचाया। दो वर्ष तक घेवरचन्द जी ने पंजाबए हरियाणा, उत्तर प्रदेश से चारे की व्यवस्था की। पष्चिमी राजस्थान में दो साल में रिकॉर्ड 550 पशु षिविर लगवाये। जिसमें से 80 प्रतिषत आज भी गौषाला के रूप में कार्यरत है। उस जमाने में उनके द्वारा करोड़ों रूपए लागत का चारा उपलब्ध करा भीषण अकाल में गौधन की रक्षा की गई। उनकी इस असाधरण सेवा के लिए भारत के राष्ट्रपति डॉ॰ शंकर दयाल शर्मा ने उन्हे वर्ष 1992 में दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत किया। हमेशा लोगों की मदद के लिए आगे रहे षिक्षा को उन्होने मानव जीवन का सर्वोत्तम मूल्य माना। जोधपुर में ओसवाल सिंह सभा की विद्यालय सरदार स्कूल के लिए महावीर गेम्स कॉम्पलेक्स की स्थापना कराई। उसी दौर में भगवान महावीर की 2500वीं जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष में भगवान महावीर षिक्षण संस्थान की स्थापना की, जो आज महावीर पब्लिक स्कूल एवं बादलचन्द सुगनकंवर चौरड़िया बालिका विद्यालय के रूप में विख्यात है। कलेक्ट्रेट के सामने स्थित भगवान महावीर उद्यान भी घेवरचन्द जी के प्रयासों से स्थापित हो पाया।
उच्च कोटी की षिक्षा को सदैव ही प्रथम पायदान पर रखने वाले घेवरचन्द जी ने 1995 में ओसवाल सिंह सभा की अध्यक्षता करते हुए सरदार स्कूल के शताब्दी वर्ष को भव्यातिभव्य रूप से मनाया। विभन्न प्रकार के सांस्कृतिक, सामाजिक व शैक्षणिक कार्यक्रम आयोजित करवाये गए। जोधपुर के इतिहास में यह समारोह आज भी याद किया जाता है। क्योंकि तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ॰ शंकर दयाल शर्मा जी इस कार्यक्रम में भाग लेने हेतु ही दो दिन तक जोधपुर में ही ठरहते थे। सच्ची ख़ुशी पाने का मार्ग वास्तव में, लोक सेवा की उनकी परिभाषा बहुत ही जागरुक करने वाली है – उनके विचार में लोक सेवा जीवन का उद्देश्य है और जीवन को बेहतर बनाने की प्रक्रिया है। दूसरों को खुशी देने मे स्वयं भी ख़ुशी का अनुभव होत है – उनका कहना है कि लोग अपना सारा जीवन खुशी की तलाश में इधर-उधर भागते हुए बिताते हैं, यह महसूस किए बिना कि सच्ची खुशी का रास्ता दूसरों की मुस्कान में और मदद करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करने से मिलता है। उनके अनुसार खुषी के कई स्त्रोत है जैसे- किसी को शिक्षित करना, किसी की मदद करना, कुछ ऐसा बनाना जो दूसरों को खुश करे, अपनी खुशी की कुंजी दूसरों को खुश करने में निहित है, यही लोक सेवा का एक सरल मंत्र है। उनकी दृष्टि में यही सामाजिक सुधार का सही अर्थ है और यही एक सबक है जिसे लोगों को सीखने की जरूरत है। जोधपुर के लिए प्यार और विजन व्यवसायिक व सामाजिक प्रतिष्ठा प्रदान करने वाला जोधपुर शहर घेवरचन्द जी के हिवड़े का कोर है। वे इसे भारत का सबसे स्वच्छ शहर बनाने की दिशा में काम करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि जोधपुर में शैक्षिक सुविधाएं आसमान तक पहुंचे। उनका सपना है कि जोधपुर के बच्चे बड़े सपने देखें। वह ऐसे समय की कल्पना करते हैं जब जोधपुर दुनिया के सबसे बड़े मेहमाननवाज स्थानों में से एक के रूप में जाना जाएगा। सीधे शब्दों में कहें, तो वह चाहते हैं कि यह दुनिया के महान शहरों में से एक हो। आज उनके यही प्रेरणादायक विचार और सोच युवा और भावी पीढ़ी के लिए प्रोत्साहन का काम करते हैं।
घेवरचन्द जी की सामाजिक व व्यवसायिक निष्ठा व उत्कृष्टता को असंख्य सम्मानों से नवाजा गया, जिसमें से कुछ प्रमुख आपको बताते हैं-
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